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चर्चा: हरिद्वार में ‘निर्विरोध दमन’, क्या शिक्षक तय कर रहे हैं छात्र नेता?

Byआर सी

Sep 26, 2025

हरिद्वार (आरसी /संदीप कुमार) एक तरफ जहाँ पूरे उत्तराखंड में छात्र राजनीति की गूँज धीमी पड़ रही है, वहीं हरिद्वार जिले के कुछ विद्यालयों से छात्र संघ चुनाव को लेकर एक गंभीर और चौंकाने वाली खबर सामने आई है। राजनीतिक जानकारों और छात्र नेताओं का आरोप है कि जिले के कई विद्यालयों में शिक्षकगण मिलीभगत कर ‘निर्विरोध’ छात्र नेता और सदस्य घोषित कर देते हैं, जिससे छात्र शक्ति का लोकतांत्रिक अधिकार सीधे तौर पर हनन हो रहा है।

लोकतंत्र की ‘नर्सरी’ में मनमानी

छात्र राजनीति को लोकतंत्र की पहली पाठशाला माना जाता है, जहाँ युवा नेतृत्व करना और जवाबदेही तय करना सीखते हैं। लेकिन हरिद्वार की यह कथित प्रथा इस मूलभूत सिद्धांत पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

छात्र नेताओं का कहना है कि यह ‘निर्विरोध घोषणा’ का तरीका विद्यालयों को अपनी मनमानी जारी रखने की खुली छूट देता है। उनका तर्क है कि जब छात्र नेता विद्यालय प्रशासन की सहमति से चुने जाते हैं, तो वे विद्यालय प्रशासन के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा पाते, जिससे विद्यालयों की जवाबदेही लगभग समाप्त हो जाती है।

एक वरिष्ठ छात्र नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जब छात्रों की राजनीति की नर्सरी का ही दमन कर दिया जाता है, तो यह कैसे माना जा सकता है कि ये विद्यालय छात्रों को राजनीति विज्ञान या लोकतांत्रिक मूल्य सिखा रहे हैं? यह सीधे तौर पर छात्र राजनीति का दमन है।”

छात्र राजनीति में देश और प्रदेश  के संदर्भ में छात्र राजनीति का महत्व केवल कैंपस तक सीमित नहीं रहा है।

ऐतिहासिक महत्व: नेतृत्व की नर्सरी छात्र राजनीति ने पंडित जवाहरलाल नेहरू, जी. बी. पंत, लाल बहादुर शास्त्री, शंकर दयाल शर्मा और वी. पी. सिंह जैसे कई शीर्ष नेताओं को जन्म दिया, जिन्होंने आजादी के बाद देश की बागडोर संभाली।

उत्तराखंड राज्य में भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा और मुरली मनोहर जोशी ने छात्र जीवन में ही राजनीति का ककहरा सीखा। एनडी तिवारी समेत प्रदेश के चार पूर्व मुख्यमंत्री छात्रसंघ के महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।

नेतृत्व का स्रोत: देश और राज्य को दिशा देने का काम अक्सर छात्र राजनीति की नर्सरी से निकले नेतृत्व ने किया है।

आज यही छात्र राजनीति संकट की कगार पर खड़ी है। प्रदेश में छात्र संघ चुनावों पर अनिश्चितता, राजनीतिक दलों का बढ़ता हस्तक्षेप और कैरियर का अत्यधिक दबाव पहले से ही छात्र शक्ति को कमजोर कर रहा था। अब विद्यालय स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के दमन की खबरें इस संकट को और गहरा रही हैं।

विश्लेषकों की चिंता

कई राजनीतिक विश्लेषकों ने मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था, “हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव के समय लोकतंत्र पर्व मनाते हैं, लेकिन छात्रों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि इस पर्व की शुरुआत छात्र राजनीति से ही हो।”

यदि हरिद्वार जैसे जिलों में विद्यालयों द्वारा इस तरह सीधे तौर पर छात्र राजनीति का गला घोंटा जाता रहा, तो यह न केवल शैक्षिक परिसरों की स्वतंत्रता को खत्म करेगा, बल्कि भविष्य में सामाजिक सरोकार रखने वाले और संघर्षशील नेतृत्व के पैदा होने की संभावनाओं पर भी ताला लगा देगा।

कई छात्रों और छात्र नेताओं ने इस चर्चा के चलते कहा कि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को इस मामले में तुरंत संज्ञान लेते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि विद्यालयों में छात्र संघ चुनाव लिंगदोह समिति के अनुसार पारदर्शी, नियमित और लोकतांत्रिक तरीके से हों, ताकि लोकतंत्र की यह पहली पाठशाला बची रहे।

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