ब्यूरो(आर सी/संदीप कुमार) भारत सरकार न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका रुख जीवंत मजदूरी (लिविंग वेज) की अवधारणा को अपनाने की ओर बढ़ा है। केंद्र सरकार ने हाल ही में 1 अक्टूबर 2024 से न्यूनतम मजदूरी दरों में संशोधन किया, जिसमें परिवर्तनशील महंगाई भत्ता (VDA) को शामिल करते हुए अकुशल श्रमिकों के लिए दैनिक मजदूरी 783 रुपये (20,358 रुपये मासिक) और उच्च कुशल श्रमिकों के लिए 1,035 रुपये (26,910 रुपये मासिक) निर्धारित की गई है। यह कदम बढ़ती जीवन-यापन लागत को देखते हुए उठाया गया है।जीवंत मजदूरी की दिशा में प्रयास: सरकार ने 2025 तक न्यूनतम मजदूरी को जीवंत मजदूरी से बदलने की योजना बनाई है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से तकनीकी सहायता ली जा रही है। जीवंत मजदूरी का लक्ष्य श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और कपड़े जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली आय सुनिश्चित करना है। यह न्यूनतम मजदूरी से एक कदम आगे है, जो केवल न्यूनतम निर्वाह स्तर प्रदान करती है।राज्य-स्तरीय भिन्नताएं और चुनौतियां: भारत में न्यूनतम मजदूरी तय करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझा है, जिसके कारण अलग-अलग राज्यों में मजदूरी दरें भिन्न हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में अकुशल श्रमिकों के लिए मासिक मजदूरी 18,066 रुपये है, जबकि बिहार में यह काफी कम है। हालांकि, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का अनुपालन कई क्षेत्रों में कमजोर है, खासकर असंगठित क्षेत्र में, जहां 90% श्रमिक कार्यरत हैं। रुड़की में हाल ही में पीपल्स सोशल एक्शन के तहत एपीस इंडिया लिमिटेड के श्रमिकों द्वारा धरना-प्रदर्शन इसका जीवंत उदाहरण है, जहां श्रमिकों ने न्यूनतम मजदूरी लागू करने की मांग की।श्रमिकों की मांग और सरकारी प्रतिक्रिया: रुड़की में पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक के नेतृत्व में श्रमिकों ने उप जिला अधिकारी (एसडीएम) के सामने न्यूनतम मजदूरी और बेहतर सुविधाओं की मांग रखी। एसडीएम ने तत्काल संज्ञान लेते हुए लेबर इंस्पेक्टर को निर्देश दिए, और कंपनी प्रबंधन को नोटिस जारी करने की चेतावनी दी गई। यह घटना दर्शाती है कि स्थानीय स्तर पर श्रमिकों की आवाज उठने पर प्रशासन सक्रिय होता है, लेकिन व्यापक स्तर पर अनुपालन सुनिश्चित करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है।आलोचनाएं और भविष्य की दिशा: कुछ ट्रेड यूनियनों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि न्यूनतम मजदूरी दरें बाजार की वास्तविकताओं से कम हैं और नियमित संशोधन की कमी श्रमिकों के साथ अन्याय है। दूसरी ओर, सरकार का दावा है कि मजदूरी वृद्धि से श्रमिकों के जीवन में खुशहाली आएगी। विशेषज्ञों का सुझाव है कि जीवंत मजदूरी लागू करने के लिए क्षेत्रीय जीवन-यापन लागत को ध्यान में रखकर एकरूपता लाने की आवश्यकता है, लेकिन छोटे और मध्यम उद्यमों पर वित्तीय बोझ बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है।निष्कर्ष: भारत सरकार न्यूनतम मजदूरी को मजबूत करने और जीवंत मजदूरी की ओर बढ़ने के लिए कदम उठा रही है, लेकिन क्षेत्रीय भिन्नताएं, अनुपालन की कमी और आर्थिक असमानता इस राह में चुनौतियां हैं। रुड़की जैसे स्थानीय आंदोलनों से यह स्पष्ट है कि श्रमिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और सरकार को इन मांगों पर त्वरित कार्रवाई करनी होगी। यदि 2025 तक जीवंत मजदूरी लागू हो जाती है, तो यह भारत के 50 करोड़ से अधिक श्रमिकों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।