हरिद्वार (आर सी / संदीप कुमार) जिलेभर में संचालित कई निजी स्कूल बसों का संचालन बच्चों की सुरक्षा और सुविधा को ताक पर रखकर किया जा रहा है, जिससे उनके जीवन पर जोखिम बढ़ गया है। जिले भर में कई ऐसी बसें चल रही हैं, जो न तो शासन के आदेशों का पालन कर रही हैं और न ही सुप्रीम कोर्ट के सख्त दिशानिर्देशों का। इन नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जबकि परिवहन विभाग इस पर मूकदर्शक बना हुआ है।
नियमों की खुलेआम अनदेखी और परिवहन विभाग की चुप्पी
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में चलने वाली स्कूल बसों में सुरक्षा मानकों की भारी कमी देखी गई है। कई बसें बिना सह-चालक के संचालित हो रही हैं, जो बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा, कई बसों में अनिवार्य सुरक्षा उपकरण, जैसे अग्निशामक यंत्र और प्राथमिक चिकित्सा किट तक नहीं हैं।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल हरिद्वार परिवहन विभाग की भूमिका पर उठ रहा है। तमाम नियमों और दिशानिर्देशों के बावजूद, परिवहन विभाग इन अनियमितताओं पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है। विभाग की निष्क्रियता के कारण स्कूल बस संचालक बेखौफ होकर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।
GPS ट्रैकिंग का अभाव और सुरक्षा उपकरणों की भारी कमी
नियमों के अनुसार, स्कूल बसों में सुरक्षा के लिए GPS ट्रैकिंग और सीसीटीवी कैमरे अनिवार्य हैं। लेकिन, जिले की अधिकांश निजी स्कूल बसों में इन महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरणों की भारी कमी है। GPS ट्रैकिंग न होने से माता-पिता अपने बच्चों की लोकेशन ट्रैक नहीं कर पाते, जिससे आपातकाल की स्थिति में संपर्क करना मुश्किल हो जाता है।
इसके अलावा, बसों में स्पीड गवर्नर भी नहीं लगे हैं, जिससे गति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यह बच्चों की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है।
चालकों की योग्यता और अन्य मानदंडों पर सवाल
नियमों के अनुसार, स्कूल बस चालक को कम से कम पांच साल का भारी वाहन चलाने का अनुभव होना चाहिए और उसका पुलिस सत्यापन अनिवार्य है। साथ ही, यदि किसी चालक का परिवहन नियमों के उल्लंघन में दो बार चालान हुआ है, तो वह स्कूल बस चलाने के लिए अयोग्य माना जाता है। लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। कई चालकों के पास न तो पर्याप्त अनुभव है और न ही उनका सत्यापन हुआ है, जिससे बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
जिन बसों में छात्राओं को ले जाया जाता है, उनमें महिला सहायक का होना अनिवार्य है, लेकिन कई बसों में इस नियम का भी पालन नहीं हो रहा है। यह छात्राओं की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। कईं बसों में तो ऐसी महिला सह चालाक हैं जिनकी उम्र 60 वर्ष से ज्यादा हैं।
लोगों का कहना है कि सरकार सिर्फ नियम बनाती है, लेकिन उन्हें लागू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती। जब तक सरकार और प्रशासन सख्ती से इन नियमों का पालन नहीं करवाएगा, तब तक बच्चों की सुरक्षा खतरे में रहेगी। इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने और सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि हरिद्वार के बच्चों को सुरक्षित और सुविधाजनक परिवहन मिल सके।
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